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गुरुवार, 6 मार्च 2014

कारवां चलता रहा---पथिकअनजाना—507 वीं पोस्ट




मीत गीत रीत प्रीत नीत जीत की नही यहाँ प्यास मुझे
बस गुजर गई सारी उम्र इंतजार में प्यासा ही रह गया
धन पद हद मद मिले कहीं कभी हाल मेरा पूछे
आया जिस रंग में वही रह गया दूजा रंग चढ पाया
शायद मकसद पूरा करने हेतू  नरक फिर आना होगा
प्रयास मकसद खोजने का मै ताउम्र करता ही रह गया
वजह नही राह पनाह सलाह नही बताई गई हैं मुझे
किससे मांगे मदद पुकारने की दिशा अधियारा अनजान
हरेक देता हिदायतें कारवां चलता रहा मैं दूर हो गया
पथिक अनजाना
http://pathic64.blogspot.com


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